Dhairya ka fal धैर्य का महत्व
धैर्य का अमृत
जीवन में विष और अमृत दोनों का अवसर मिलता है । विष का आशय विपरीत परिस्थितियां और अमृत का आशय अनुकूल परिस्थितियां हैं । यदि प्रतिकूल हालात उत्पन्न हों तो धैर्य का अमृत पीना चाहिए और अनुकूल समय है तो धैर्य का अमृतपान करना चाहिए । होता यह है कि प्रतिकूल वक्त में व्यक्ति साहस खो देता है और नकारात्मक चिंतन में लग जाता है और अनुकूलता के समय अहंकार में डूब जाता है । भगवान शंकर हर स्थिति में प्रसन्न रहते हैं । यदि शिवजी का उपासक जीवन की कठिनाइयों को आत्मविश्वास एवं नेक इरादों की दवात में घोलकर दृढ़ इच्छाशक्ति से अपने जीवनपथ के कागज पर बुद्धि में निवास करने वाली ज्ञानशक्ति ( सरस्वती ) से लिखे तो उसके | जीवन पथ पर आनंद प्रदाता शिवजी दिखाई पड़ने | लगेंगे और उसे आनंद की अनुभूति होगी । शिव की उपासना से यह प्रेरणा मिलती है कि | भिन्न - भिन्न प्रकृति और अभिरुचि के लोगों को एक साथ करना ही सार्थक जीवन पद्धति है । शिवजी के सिर में जल रूप में गंगा और ऊर्जा के रूप में चंद्रमा , गले में सर्प और पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर , मां पार्वती का वाहन शेर और खुद उनका वाहन नंदी ( बैल ) आपस में एक दूसरे के वैरी होने के बावजूद एक साथ एक परिवार में रहते हैं । इस प्रकार शिवजी की सच्ची पूजा से विपरीत परिस्थितियों से विचलित होने के बजाय उसके साथ तादात्म्य बनाने की क्षमता प्राप्त होती है । इसके अलावा शिवजी के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप पर दृष्टि डालने से जहां दाहिना हिस्सा शिवजी के रूप में कर्मपक्ष का परिचय देता है वहीं वाम भाग भाव पक्ष का स्वरूप है । दोनों पक्षों के संयोग से कोई कार्य किया जाएगा तो सफलता जल्द मिलेगी । आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से इसे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के रूप में परिभाषित किया जा सकता है । हार्डवेयर यानी कठिन परिस्थितियां और सॉफ्टवेयर का आशय अनुकूलता । दोनों से जैसे कंप्यूटर चलता है , वैसे ही जीवन का कंप्यूटर भी चलता है ।
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