Anthe karan kya he अंत : करण क्या है

अंत: करण      
                          What is Conscience                                                                                                                                                         प्रत्येक जीव के अंतःकरण में एक दीपक है , पर अक्सर उसकी लौ बुझी हुई होती है । उस दीपक के प्रज्वलित होने के लिए जब हम प्रयासरत रहकर प्रतीक्षा करते हैं , तब ही हमारा अंतःकरण आलोकित हो पाता है और हमें सदगति प्राप्त हो पाती है । जीव सदियों से आवागमन के चक्र में फंसा रहा है । इसकी चेतना पर पूर्व जन्म के प्रारब्ध एवं कुसंस्कार परत दर - परत आच्छादित रहते है । इसी कारण वह दीपक होकर भी जलने को तैयार नहीं होता है । आज के परिवेश में व्यक्ति संस्कार को तो जान गया है , परंतु वह प्रारब्धजन्य संस्कार से मुक्त होने | का प्रयास नहीं करता है । हालांकि प्रत्येक के जीवन में कभी न कभी एक ऐसा मोड़ आता है , जब मार्गदर्शक उसे राह दिखानी कोशिश करता है , लेकिन इसी कारण से मानव का मन उसे भी स्वीकार करने को तैयार नहीं होता । आपकी कल की साधना , योग और मार्गदर्शक का सान्निध्य आज आपका साथ देते हैं । जो समय रहते इन्हें समझ लेता है वह संसार से पार पा लेता है और संसार के मकड़जाल में जो उलझ जाता है , वह इस ताने - बाने को बुनने में ही सारा जीवन समाप्त कर देता है । जन्म - जन्मांतरों से मनुष्य ने संस्कारों की चादर ओढ़ रखी है । कोई तन के भोगों का संस्कार है , जो रोग बनकर आता है । कोई मन का संस्कार है , जो चिंतन में तनाव लेकर आता है । । संस्कार भी अनेकानेक हैं , परंतु अपने संचित प्रारब्ध और परमात्मा की कृपा से यदि मन में ही भक्ति योग का विराट प्रादुर्भाव हो जाए तो फिर कहना ही क्या ? यह जीवन परमात्मा का दिया हुआ अमूल्य उपहार है । इस जीवन को समझना आवश्यक है , क्योंकि यहीं इस संसार में किसी से कुछ लेना है और किसी को पुनः कुछ देना भी है । कहीं पर लाभ है तो कहीं पर हानि । सबमें संस्कार - प्रारब्ध कार्य करते हैं , लेकिन इन सबके पार ले जाता है , आपका किया हुआ मूल कार्य , जिसके सहारे बड़ी - से - बड़ी उपलब्धि हासिल करके जीवन को सफल बनाया जाना संभव है ।

Comments

Popular posts from this blog

"Sorry कैसे बोलें कि सामने वाला हो जाए प्रभावित"

हम अपने शरीर को कैसे स्वस्थ रख सकते हैं

Daya bhav kya he दया भाव का महत्व