Khusi kha mahatva खुशी का महत्व
खुशी के फूल
What is the importance of happiness
उसी मिट्टी की उर्वरा शक्ति से , जल - वायु के सान्निध्य से पोषित होकर कालांतर में उन बीजों में से एक विष बनता है व दूसरा अमृत। यदि लालन - पालन की | समान स्थितियां हैं तो उसी खाद अथवा मिट्टी - पानी का सेवन कर एक विष व दूसरा अमृत कैसे बन गया ? ठीक उसी तरह जैसे एक भरी - पूरी कक्षा में से एक छात्र स्वर्ण पदक विजेता व दूसरा अनुत्तीर्ण | कैसे हुआ , जबकि दोनों को शिक्षा देने वाले गुरुजन समान थे । दरअसल विगत का कर्मफल ही वर्तमान में प्रारब्ध का बीज बनकर विष - अमृत के रूप में परिभाषित होता है । कर्म की प्रकृति व गुणधर्म के अनुसार ही जीव भावी जीवन जीने के लिए विवश होता है । यदि | अतीत के कर्मफल से वर्तमान का निर्माण संभव है तो वर्तमान के सदुपयोग से उसी अनुपात में भविष्य का सुखद निर्माण भी । हमारे विचारों व कर्मों के मंथन से ही खुशी अथवा दुख की रचना होती है । सदविचारों के समुचित दिशा में प्रसार से हर्ष का परिवेश बनता है , जबकि उन्हीं विचारों का अनुचित दिशा में नकारात्मक उपयोग खुशियों के महल को तहस नहस कर सभी प्रकार के दुखों , क्लेशों व विपत्तियों का कारण भी बन सकता है । जानबूझकर जो षड्यंत्र अथवा कुचक्र किसी और के लिए रचे जाते हैं , वे परोक्षतः स्वयं को ही षड्यंत्रों के भंवर में डुबो देने का उपक्रम करते हैं । किसी के जीवन में कांटे बो कर कोई खुशी के फूलों की कल्पना नहीं कर सकता । खुशी के फूल पवित्रता की खाद - पानी से पल्लवित व पुष्पित हृदयरूपी क्यारी में ही खिल सकते हैं । किसी का कुछ भी अनिष्ट सोचने से पहले स्वयं को उसके स्थान पर रखकर देखें । यह दुर्लभ मानव जीवन चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मिला है , न कि रात - दिन कुचिंतन के मार्ग पर अग्रसर हो अनाप - शनाप लिख बोलकर कोर्ट - कचहरियों के चक्कर में फंस दुर्लभ जीवन गंवाने के लिए ।
What is the importance of happiness
उसी मिट्टी की उर्वरा शक्ति से , जल - वायु के सान्निध्य से पोषित होकर कालांतर में उन बीजों में से एक विष बनता है व दूसरा अमृत। यदि लालन - पालन की | समान स्थितियां हैं तो उसी खाद अथवा मिट्टी - पानी का सेवन कर एक विष व दूसरा अमृत कैसे बन गया ? ठीक उसी तरह जैसे एक भरी - पूरी कक्षा में से एक छात्र स्वर्ण पदक विजेता व दूसरा अनुत्तीर्ण | कैसे हुआ , जबकि दोनों को शिक्षा देने वाले गुरुजन समान थे । दरअसल विगत का कर्मफल ही वर्तमान में प्रारब्ध का बीज बनकर विष - अमृत के रूप में परिभाषित होता है । कर्म की प्रकृति व गुणधर्म के अनुसार ही जीव भावी जीवन जीने के लिए विवश होता है । यदि | अतीत के कर्मफल से वर्तमान का निर्माण संभव है तो वर्तमान के सदुपयोग से उसी अनुपात में भविष्य का सुखद निर्माण भी । हमारे विचारों व कर्मों के मंथन से ही खुशी अथवा दुख की रचना होती है । सदविचारों के समुचित दिशा में प्रसार से हर्ष का परिवेश बनता है , जबकि उन्हीं विचारों का अनुचित दिशा में नकारात्मक उपयोग खुशियों के महल को तहस नहस कर सभी प्रकार के दुखों , क्लेशों व विपत्तियों का कारण भी बन सकता है । जानबूझकर जो षड्यंत्र अथवा कुचक्र किसी और के लिए रचे जाते हैं , वे परोक्षतः स्वयं को ही षड्यंत्रों के भंवर में डुबो देने का उपक्रम करते हैं । किसी के जीवन में कांटे बो कर कोई खुशी के फूलों की कल्पना नहीं कर सकता । खुशी के फूल पवित्रता की खाद - पानी से पल्लवित व पुष्पित हृदयरूपी क्यारी में ही खिल सकते हैं । किसी का कुछ भी अनिष्ट सोचने से पहले स्वयं को उसके स्थान पर रखकर देखें । यह दुर्लभ मानव जीवन चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मिला है , न कि रात - दिन कुचिंतन के मार्ग पर अग्रसर हो अनाप - शनाप लिख बोलकर कोर्ट - कचहरियों के चक्कर में फंस दुर्लभ जीवन गंवाने के लिए ।
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