Mane se samvaad मन से संवाद
मन से संबाद।
heartbroken मन से संवाद कभी ऐसे क्षण भी आते हैं जब मनुष्य अपने मन की बात करना चाहता है , किंत किससे करे यह संकट खड़ा हो जाता है । मनुष्य अपनी भावनाएं मन में ही रखने को विवश हो जाता है और उसका दबाव सहन करता रहता है । जिनके साथ सदैव रह रहा उनसे भी मन के तल पर दूर रहता है । दावे जितने भी कर लिए जाएं , किंतु संसार में कोई भी संबंध ऐसा नहीं है जिसे समरस कहा जा सके । एक मनुष्य का मन ही है जो उसकी समस्त भावनाओं और विचारों के मौलिक रूप का साक्षी होता है , क्योंकि मन को शब्दों की आवश्यकता भी नहीं होती । कोई विचार कहां से उपजा है , किस उद्देश्य को लेकर चलने वाला है यह स्वयं का मन ही जानता है । _ _ _ मन मनुष्य के विचारों के मूल रूप का साक्षी होता है । वह उनका परीक्षण करने में भी समर्थ होता है । मनुष्य का स्वयं के मन से विमर्श उसे सदैव सच का मार्ग दिखाने वाला होता है । बहुत से धर्म मन को परमात्मा का सूक्ष्म रूप मानते हैं । भारत के कई संतों ने मन में परमात्मा को खोज लेने की बात कही है । विज्ञान ने भी मन की शक्ति को सभी शक्तियों से ऊपर माना है और उसे संकल्पशक्ति का नाम दिया है । जो सभी सांसारिक शक्तियों से श्रेष्ठ है वह परमात्मा ही है । मन की शक्ति को पहचानना ईश्वर को पहचानना है । मन से वार्ता ईश्वर की कृपा प्राप्त करने की प्रार्थना है । _ _ मन से संवाद करना है तो उसे विकारों , मोह माया के अंधेरे से बाहर लाना होगा । मन में प्रतिष्ठित ईश्वर के दर्शन के लिए मन का निर्मल होना आवश्यक है । मनुष्य जब अपने मन के निकट होता है तो सारी सृष्टि से निकटता बन जाती है । जो बात वह अपने मन से कर सकता है वह किसी से भी कर सकता है । यदि उसे दुर्भावना भली नहीं लगती तो वह किसी के लिए भी दुर्भावना नहीं रखेगा । जो स्वयं को स्वीकार्य है वही अन्य के लिए हो तभी संतुलन बनता है ।

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