Aadhyatmik pension आधयात्मिक पैंशन क्या है
What is Spiritual pension
प्रायः तमाम मनुष्य जीवन के अंतिम पड़ाव पर अशांत एवं असंतुष्ट दिखाई देते हैं । इसका मुख्य कारण आध्यात्मिक पेंशन न मिल पाना है । असल में यह मनुष्य की अज्ञानता ही है कि वह केवल मौद्रिक पेंशन के विषय में ही जानता है , परंतु वह | अपने आंतरिक संसार में बैठे दुश्मनों जैसे दुराग्रह , अहंकार , मोह और माया इत्यादि के विरुद्ध कोई युद्ध नहीं लड़ता । इसलिए उसे दोहरी पेंशन के रूप में आध्यात्मिक पेंशन नहीं मिल पाती । यह पेंशन जीवन में मनुष्य को सम अवस्था के रूप में प्राप्त होती है । मनुष्य जब तक अपने दुराग्रहों से मुक्त नहीं हो जाता | तब तक वह किसी शाश्वत सत्य को नहीं समझ सकता । जन्म - जन्मांतर से जमा हो रहे कर्मफल के कीचड़ में सना मानवीय मन सांसारिक माया के वशीभूत असहज जीवन जीने पर मजबूर होता है । _ युवा तथा प्रौढ़ावस्था में मनुष्य भौतिक व्यसनों और सुख - सुविधाओं से मानसिक अशांति को कुछ समय के लिए शांत कर लेता है , परंतु वृद्धावस्था में जब शारीरिक शक्ति कमजोर हो जाती है तब वह | उनसे शांति नहीं पाता । तब उसे आध्यात्मिक पेंशन की आवश्यकता होती है । यह आध्यात्मिक पेंशन भी मनुष्य को अपने आंतरिक संसार के दुश्मनों से लड़कर कमानी पड़ती है । प्रत्येक संप्रदाय एवं धार्मिक मत में इसकी प्राप्ति के नियम एकसमान ही होते हैं । जैसे सच्चे मूल्यों से अर्जित जीवन यापन , दया एवं करुणा , आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना , अहिंसा , सत्य और सही दृष्टिकोण इत्यादि । पतंजलि ने इन्हें अष्टांग योग के रूप में परिभाषित किया है । इन जीवन मूल्यों को अपनाने से मनुष्य धीरे - धीरे कर्म फलों से मुक्ति पाकर सम स्थिति में पहुंचकर आध्यात्मिक पेंशन के रूप में शांति का अनुभव करने लगता है और इस प्रकार इस पेंशन द्वारा मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता | है । इस सत्य को समझकर प्रत्येक मनुष्य को इस दोहरी पेंशन को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए ।
प्रायः तमाम मनुष्य जीवन के अंतिम पड़ाव पर अशांत एवं असंतुष्ट दिखाई देते हैं । इसका मुख्य कारण आध्यात्मिक पेंशन न मिल पाना है । असल में यह मनुष्य की अज्ञानता ही है कि वह केवल मौद्रिक पेंशन के विषय में ही जानता है , परंतु वह | अपने आंतरिक संसार में बैठे दुश्मनों जैसे दुराग्रह , अहंकार , मोह और माया इत्यादि के विरुद्ध कोई युद्ध नहीं लड़ता । इसलिए उसे दोहरी पेंशन के रूप में आध्यात्मिक पेंशन नहीं मिल पाती । यह पेंशन जीवन में मनुष्य को सम अवस्था के रूप में प्राप्त होती है । मनुष्य जब तक अपने दुराग्रहों से मुक्त नहीं हो जाता | तब तक वह किसी शाश्वत सत्य को नहीं समझ सकता । जन्म - जन्मांतर से जमा हो रहे कर्मफल के कीचड़ में सना मानवीय मन सांसारिक माया के वशीभूत असहज जीवन जीने पर मजबूर होता है । _ युवा तथा प्रौढ़ावस्था में मनुष्य भौतिक व्यसनों और सुख - सुविधाओं से मानसिक अशांति को कुछ समय के लिए शांत कर लेता है , परंतु वृद्धावस्था में जब शारीरिक शक्ति कमजोर हो जाती है तब वह | उनसे शांति नहीं पाता । तब उसे आध्यात्मिक पेंशन की आवश्यकता होती है । यह आध्यात्मिक पेंशन भी मनुष्य को अपने आंतरिक संसार के दुश्मनों से लड़कर कमानी पड़ती है । प्रत्येक संप्रदाय एवं धार्मिक मत में इसकी प्राप्ति के नियम एकसमान ही होते हैं । जैसे सच्चे मूल्यों से अर्जित जीवन यापन , दया एवं करुणा , आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना , अहिंसा , सत्य और सही दृष्टिकोण इत्यादि । पतंजलि ने इन्हें अष्टांग योग के रूप में परिभाषित किया है । इन जीवन मूल्यों को अपनाने से मनुष्य धीरे - धीरे कर्म फलों से मुक्ति पाकर सम स्थिति में पहुंचकर आध्यात्मिक पेंशन के रूप में शांति का अनुभव करने लगता है और इस प्रकार इस पेंशन द्वारा मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता | है । इस सत्य को समझकर प्रत्येक मनुष्य को इस दोहरी पेंशन को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए ।
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