Chinta or chintan चिंता और चिंतन में अंतर

                  Worry and thought                                                                                                                                       
   What is difference between worry and thoughts.                                                                                                                                                                       चिंता और चिंतन .....प्रत्येक मनुष्य के जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जब वह चिंता से ग्रस्त हो जाता है या फिर चिंतन के मार्ग का पथिक बनता है । दोनों शब्द सुनने में प्रायः एक जैसे ही लगते हैं , परंतु दोनों के अर्थ विपरीत हैं । चिंता मनुष्य की शारीरिक , मानसिक एवं आत्मिक शांति को नष्ट कर देती है । चिंताग्रस्त व्यक्ति सोचता अधिक है और करता कम है । वह सफलता और असफलता के मध्य की दूरी नापने में ही सारा दिन व्यतीत कर देता है । चिंतन भी एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें किसी । विचार या बात को गंभीरतापूर्वक सोचा जाता है । । किसी विषय पर सकारात्मक सोच के साथ मनन करना चिंतन कहलाता है । विचार अवस्था का नाम ही चिंतन है । चिंतन में हम किसी भी विचार या विषय की समालोचना करते हैं तथा उसके प्रति जागरूक होते हैं । चिंतन का यह मतलब नहीं कि आप समस्याओं को लेकर चिंता में डूबे रहें । चिंतन वह साधन है जिसमें मनुष्य को उन्नति एवं कार्य में सफलता का मार्ग दिखता है । चिंतनशील व्यक्ति समस्या के समाधान तक पहुंचता है । जहां चिंता समस्या को जन्म देती है वहीं चिंतन समस्याओं का हल करता है । चिंतनशील व्यक्ति मानसिक रूप से सुदृढ़ एवं परिपक्व होता है । । साधना एवं अध्यात्म के मार्ग में चिंता सबसे बड़ी बाधक है , जबकि चिंतन साधना एवं अध्यात्म के शिखर की ओर ले जाता है । चिंताग्रस्त व्यक्ति स्वयं तो निराशा एवं अवसाद की स्थिति में रहता ही है और जो भी उसकी संगति में रहते हैं उनको भी प्रभावित करता है । चिंतनशील व्यक्ति सदैव प्रसन्न चित्त एवं सकारात्मक ऊर्जा से ओतप्रोत होता है तथा अपने संपर्क में रहने वालों की समस्याओं का शीघ्र समाधान कर देता है । चिंतन और चिंता में | वही अंतर होता है जो एक स्वस्थ व्यक्ति और रोगी में होता है । हमारे मनीषियों ने भी चिंता को विष के समान तथा चिंतन को अमृत के समान माना है ।

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