Iksha ko kese roke इक्षाओं को कैसे रोके

                 What is desires .                                                                                                                                                         
.                                                                                                                                                                                         इच्छाएं मनुष्य का मन बड़ा चंचल होता है । यह चंचल मन ही अशांति का कारण है । इच्छाएं भी चंचल मन | की ही देन हैं । कभी शांत नहीं होने वाली इच्छाओं के पीछे हम अंधे होकर भागते रहते हैं । एक इच्छा पूरी होते ही हम दूसरी इच्छा अपने मन में पालने लग जाते हैं । इच्छाओं को सीमित करने में ही जीवन का सुख छिपा है । संसाधनों की बढ़ोतरी जीवन में सुख का क्षणिक आनंद दे सकती है , लेकिन इनसे चिरस्थायी सुख प्राप्त नहीं हो सकता । इच्छाओं की प्रकृति यदि बुरी हो तो वह हमें पाप की राह पर धकेल देती है । बुरी इच्छाओं का वेग मानवीय गुणों | को नष्ट कर देता है । इच्छाएं ही तृष्णा बढ़ाती हैं । तृष्णा के कारण हम स्वार्थ की संकीर्णता से ग्रस्त हो जाते हैं । चंचल | मन की इच्छाओं को रोकना कठिन है , लेकिन उसे सीमित तो किया जा ही सकता है । इच्छाएं यदि नेक हों , समाज और राष्ट्र हित में हों तो वे एक शक्ति हैं और यदि वे ईर्ष्या , बुराई एवं घृणा जैसे कलुषित भावों में पली - बढ़ी हों तो समाज , राष्ट्र के साथ ही स्व - विनाशकारी साबित होती हैं । जीवन में तृप्ति का भाव ही हमें चिरस्थायी शांति प्रदान कर सकता है । तृप्ति के कारण ही हम अपने अधीर मन को शांत कर अपनी ऊर्जा को सदकामों में लगा सकते हैं । इंसान की बढ़ती इच्छाएं ही आज के दौर में हिंसा और दुराचारों का अहम कारण हैं । लिहाजा अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना आवश्यक है । परमात्मा का ध्यान ही हमारे कष्टों को कम कर हमारे जीवन की राह को सुगम कर सकता है । अतः व्यर्थ की चीजों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय हमारा ध्यान परमात्मा पर केंद्रित होना चाहिए । चराचर जगत चार दिनों की चांदनी है , मिथ्या है , एक भ्रम है , जिसे एक दिन टूटना है , लेकिन परमात्मा अविनाशी , अजर और अमर है । उसका | सानिध्य ही अतृप्त इच्छाओं से पीड़ित मानव को सही रास्ता दिखा सकता है 

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