Param sukhe kese prapt kare परम सुख क्या है

              Ultimate happiness.                                                                                                                         
                                                                                 परम सुख .......संसार का प्रत्येक प्राणी सुख की कामना रखता | है । कोई भी दुख , अभाव की स्थिति को पसंद नहीं करता है , लेकिन क्या अभिलाषा रखने मात्र से उसे | सुख की प्राप्ति हो जाती है ? नहीं । मनुष्य को अगर सुख चाहिए तो उसे सुख प्राप्ति के लिए उसके स्रोत से स्वयं को जोड़ना पड़ेगा । उदाहरण के तौर पर जब आपको प्यास लगती है तो आप जल की तलाश करते हैं । आप नल - कूप , पोखर , तालाब , झरना , नदी | के निकट पहुंच कर अपनी प्यास बुझा लेते हैं । अगर कोई व्यक्ति प्यास लगने पर रेगिस्तान में जाकर जल की तलाश करे तो क्या उसकी अभिलाषा पूर्ण हो सकती है ? कदापि नहीं । वहां जल की तलाश में जाने पर प्राण और संकट में पड़ जाएंगे । ठीक इसी तरह से आज मानव भी भौतिक सुखों । को ही असली सुख मानने की भूल कर रहा है । समस्त ऋद्धि - सिद्धि का स्वामी होते हुए भी उसने भिखारी की तरह दर - दर ठोकर खाने के गलत पथ का चयन कर लिया है । वह धन , कामना , वासना में सुख को खोज रहा है , जो नश्वर हैं । वास्तविक सुख का भंडार को उसके अंदर ही भरा है । उसके अंदर परमात्मा ने अपना अंश छुपा रखा है , जो परम सुख , शांति का स्रोत है । जैसे मृग की नाभि में ही अमूल्य कस्तूरी होती है , पर उसके बारे में उसे पता नहीं होता । अगर पता होता तो जंगल में उस सुगंध की | प्राप्ति के लिए भटकने की कोई जरूरत नहीं होती । मनुष्य ने भी आज भौतिक सुखों के पीछे आध्यात्मिक सुखों को नजरअंदाज कर दिया है । पशुवत जीवन जीने को ही मानव जीवन का उद्देश्य समझ बैठा है । शारीरिक सुखों की प्राप्ति के पीछे | भूल बैठा है कि वह परमात्मा का अंश है । परमात्मा हर मामले में अमीर है , पर उसके पुत्र ने स्वयं को गरीब बना लिया है । इसका कारण है कि मानव आज परमात्मा से बिछड़ गया है । अगर वह अपने अंदर झांकने की कोशिश करे , परमात्मा से नाता | जोड ले तो उसे अनंत सखों की प्राप्ति होने लगेगी ।.                                                           
                                                                             परहित में आनंद  ........                         गुलाब का फूल पूरे उपवन में अपनी खूबसूरती और खुशबू के लि विख्यात था । जो भी उसके पास से गुजरता , उसे एकटक निहारे बगैर नहीं रह पाता । उसकी खुशबू तो ऐसी कि लोग अपनी सुध - बुध भूल जाएँ । इसकी खुशबू और खूबसूरती से प्रभावित होकर लोग इन फूलों को तोड़कर अपने साथ ले जाने लगे । इससे बेचारा गुलाब बेहद दुखी रहने लगा । पौधे की शाखाओं पर गुलाब के साथी निंरतर घटते जा रहे थे और वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था । आखिरकार गुलाब अपनी परेशानी लेकर एक जानकार शख्स के पास पहुँचा । उस शख्स ने गुलाब की समस्या को ध्यान से सुना । इसके बाद उसने गुलाब से कहा - ' इस दुनियां की रीत यही है कि जो आपके साथ जैसा व्यवहार करता हैं , आपको भी उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए । दुर्जनों के साथ दुष्टता करना ही उचित नीति है । यदि तुमने ऐसा नहीं किया यह संसार तुम्हारा अस्तित्व मिटा देगा । ' गुलाब ने उस व्यक्ति की सलाह गांठ बाँध ली । उसने लौटकर आने के बाद अपनी सुरक्षा के लिए अपनी डालियों पर काँटे पैदा करना आरंभ कर दिया । अब जो कोई भी उसकी ओर हाथ बढ़ाता , वह कांटों से उसे छलनी कर देता । इससे लोगों का उसकी ओर आना कम हो गया । कुछ दिनों बाद गुलाब के उस पौधे को एक साधु से सत्संग का भी अवसर मिल गया । साधु ने उसे बताया - ' यदि अपने जरिए किसी का भला होता है तो उससे अच्छी बात और क्या हो सकती है । परोपकार में अपने जीवन को खपाने वाले से बढ़कर सम्मानीय दुनिया में और कोई नहीं होता । ' गुलाब को अपनी खूबसूरती और सुवास बिखेरने में खुशी मिलने लगी । आज गुलाब ने दुनिया में जो सम्मान पाया है , वह अपने कांटों के बल पर नहीं , वरन् अपने पुष्पों के सौंदर्य - सौरभ के बल पर अर्जित किया है ।

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