Parivar ka kya mahetbe he परिवार का क्या महत्व है
परिवार की महत्ता
परिवार प्रत्येक इंसान के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । परिवार की पाठशाला से ही एक व्यक्ति संस्कारों की शिक्षा ग्रहण करता है । परिवार का अपनत्व हमें अकेला महसूस नहीं होने देता है । विषम परिस्थितियों में परिवार हमारे लिए रक्षाकवच | बन जाता है । अतः इस दुनिया में वह इंसान बहुत खुशकिस्मत है जिसके पास सुख में हास - परिहास करने के लिए और दुख एवं विपत्ति में साथ में बैठकर गम बांटने के लिए परिवार है । _ आज के दौर में कहने को विश्व संकीर्ण हो गया है । इसके हानिकारक प्रभाव के रूप में परिवार के सदस्यों के मध्य की दूरियां कम होने के बजाय और बढ़ गई हैं । संयुक्त परिवार की प्रथा अपने अधोपतन को पा चुकी है । आज एकल परिवार में भी माता पिता को अपने बच्चों के लिए और बच्चों को अपने माता - पिता के लिए समय नहीं है । आजकल इंसान व्यावहारिक जीवन के रिश्तों के प्रति विमुख होकर सोशल जगत में आभासी मित्रों से रिश्ते बनाने और उनसे संवाद साधने में अधिक व्यस्त होता जा रहा है । सस्ती लोकप्रियता के फेर में आत्ममुग्ध इंसान आज अपने हित और अहित की चिंता भी ठीक से नहीं कर पा रहा है । परिवार में पहले एक साथ मिलकर खाना खाने वाले अब समय के अभाव के चलते न तो एक साथ मिलकर खाना खा पाते हैं और न ही एक घर , एक परिवार में रहने के बाद मिल पाते हैं । साथ रहकर भी उनके बीच एक तरह की दूरी बनी रहती है । परिवारों का बिखराव हमारे संस्कारों और मूल्यों की परंपरा को ध्वस्त कर रहा है । गूगल हमें हर चीज ढूंढकर दे सकता है , लेकिन वह परिवार , माता - पिता और बुजुर्गों का अनुभव हमें किसी भी कीमत पर लाकर नहीं दे सकता । अतः आभासी दुनिया से निकलकर वास्तविक दुनिया में परिवार के प्रति हमें अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है , क्योंकि परिवार के बिना बड़ी से बड़ी कामयाबी और समृद्धि खोखली है ।
परिवार प्रत्येक इंसान के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । परिवार की पाठशाला से ही एक व्यक्ति संस्कारों की शिक्षा ग्रहण करता है । परिवार का अपनत्व हमें अकेला महसूस नहीं होने देता है । विषम परिस्थितियों में परिवार हमारे लिए रक्षाकवच | बन जाता है । अतः इस दुनिया में वह इंसान बहुत खुशकिस्मत है जिसके पास सुख में हास - परिहास करने के लिए और दुख एवं विपत्ति में साथ में बैठकर गम बांटने के लिए परिवार है । _ आज के दौर में कहने को विश्व संकीर्ण हो गया है । इसके हानिकारक प्रभाव के रूप में परिवार के सदस्यों के मध्य की दूरियां कम होने के बजाय और बढ़ गई हैं । संयुक्त परिवार की प्रथा अपने अधोपतन को पा चुकी है । आज एकल परिवार में भी माता पिता को अपने बच्चों के लिए और बच्चों को अपने माता - पिता के लिए समय नहीं है । आजकल इंसान व्यावहारिक जीवन के रिश्तों के प्रति विमुख होकर सोशल जगत में आभासी मित्रों से रिश्ते बनाने और उनसे संवाद साधने में अधिक व्यस्त होता जा रहा है । सस्ती लोकप्रियता के फेर में आत्ममुग्ध इंसान आज अपने हित और अहित की चिंता भी ठीक से नहीं कर पा रहा है । परिवार में पहले एक साथ मिलकर खाना खाने वाले अब समय के अभाव के चलते न तो एक साथ मिलकर खाना खा पाते हैं और न ही एक घर , एक परिवार में रहने के बाद मिल पाते हैं । साथ रहकर भी उनके बीच एक तरह की दूरी बनी रहती है । परिवारों का बिखराव हमारे संस्कारों और मूल्यों की परंपरा को ध्वस्त कर रहा है । गूगल हमें हर चीज ढूंढकर दे सकता है , लेकिन वह परिवार , माता - पिता और बुजुर्गों का अनुभव हमें किसी भी कीमत पर लाकर नहीं दे सकता । अतः आभासी दुनिया से निकलकर वास्तविक दुनिया में परिवार के प्रति हमें अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है , क्योंकि परिवार के बिना बड़ी से बड़ी कामयाबी और समृद्धि खोखली है ।
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