Isthir mane ki mahima स्थिर मन की महिमा

                   Stable mind

Isthiti mane ki mahima

स्थिर मन ---मन का बल परमात्मा की कृपा से प्राप्त होता है । यह समय है मन की शक्ति को पहचानने का । मन जब चंचल होता है सांसारिक चमक - दमक की ओर दौड़ता है । जब यह स्थिर हो जाता है तो अंतर्दष्टि का धुंधलका छंटने लगता है । 

जीवन का सच दिखने लगता है । वास्तविक आकर्षण तो ईश्वर की रची सृष्टि में है । आज जब बाहर के मनुष्य रचित रंगों , रसों को भोगने के अवसर संकुचित और सीमित हो गए हैं , तब ईश्वर और सृष्टि से निकटता का सुयोग बना है । 

अब बंद घर की खिड़की खोलकर मन की आंखों से वह सौंदर्य देखने का समय है जो सामान्य जीवन में निकट होते हुए भी उपेक्षित रहा । 
स्थिर मन से देखें तो अब नित्य प्रातः उगने वाला सूर्य अधिक आकर्षक लगने लगेगा । स्थिर मन के आनंद की अनुभूति अद्भुत होती है जिससे हम संसार की भागदौड़ में वंचित रहते हैं । 
इसी कारण जीवन सदा दुविधाओं में झूलता रहता है । अज्ञानतावश हम इसे ही जीवन का ढंग मान लेते हैं । हम यह नहीं समझते कि परमात्मा ने हमें जो मानव जीवन दिया वह पुण्य कर्मों का फल है । जो ईश्वर हमारा पिता है वह हमें कैसे दुख , संताप में देख सकता है । हमारे दुख अपनी भूल और पाप कर्मों के कारण हैं । 

हमने सारा ध्यान धन , संपदा , रुतबे , भौतिक सुख सुविधाओं से जगमग संसार पर केंद्रित कर लिया , जबकि इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ है जो जीवन को आनंद से भर सकते हैं । दुख और मृत्यु जीवन के अटल सत्य हैं । इन्हें टाला नहीं जा सकता । परमात्मा जब कृपा करता है तो हर दुख को सहने और मृत्यु से निर्भय होने की शक्ति प्राप्त हो जाती है ।
 प्रकृति परिवर्तनशील है । दिन बदलते हैं , मौसम बदलते हैं और वनस्पतियां भी बदलती हैं । जीवन का भी यही ढंग है । इसे समझ लेने के बाद जीवन सरल और सहज हो जाता है । आज समय इस विश्वास के साथ जीने का है कि वैश्विक महामारी के अंधेरे को चीर आनंद का सूर्य फिर चमकेगा ।

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