Pita ki mamta kya hoti hai पिता की ममता क्या होती है।
पिता की ममता
पिता की ममता ___मां की ममता दुनिया की सबसे बड़ी अनुभूति है । सच भी है कि मां के समान कोई भी नहीं होता । मानसिक संवेदनाएं मां से अधिक अन्य किसी को स्वीकार नहीं करतीं । यहां तक ठीक है , लेकिन मां के वात्सल्य का सबसे बड़ा पूरक तो पिता है । वह अपनी ममता को हृदय में दबाए सबकुछ न्योछावर करने के लिए पूरा जीवन लगा देता है ।
पिता अपनी संतान के लिए भी हर क्षण मरता है । यह विडंबना ही कही जाएगी कि मां की ममता में ही सब खो जाते हैं , पिता की ममता को स्पर्श करने का समय ही नहीं बचता । पिता के कठोर व्यवहार में ममता का सागर नहीं खोज पाते । यह कितना बड़ा अन्याय है , पिता के प्रति । मां के पास तो सभी जाते हैं , लेकिन पिता के पास मन की गहराइयों तक कोई जाना नहीं चाहता ।
पिता की ममता गहराइयों तक अंदर ही अंदर हर दिन नवीन आकार ग्रहण करती है । मां तो हर रोज ममता में जीती है , जबकि पिता हर रोज इसमें जीता ही नहीं , बल्कि मरता भी है ।
मां की कहानी सुखांत है , पिता की कहानी में दुखांत है ।
मां के प्रेम प्रवाह में पिता को सदैव भुलाया जाता रहा है । जीवन के निर्माण में पिता का योगदान निमित्त है , लेकिन मां को ही संसार देख पाता है । एक योगी की तपस्या की तरह पिता अपने जातक पर धैर्यपूर्वक पल - पल लुटाता चला जाता है , जीवन के अंतिम छोर तक । वह न कुछ चाहता है , न कुछ मांगता है । फिर भी पिता जीवनपर्यंत पुत्र पर स्नेह की वर्षा करता नहीं अघाता । मानो वह पुत्र के हित कल्याणा के लिए जीवन के पलों की आहुति दे रहा हो ।
पिता अपनी चिंता न करके अपनी संतान की भलाई का सब जतन करता फिरता है । उनकी भौतिक और अधिभौतिक सद्गतियों के लिए पिता प्राणपण से यथेष्ठ उपाय करता है । जीने की कला से लेकर जीवन के विज्ञान तक सभी पाठ सिखाता हआ वह पिता अंत समय में भी पत्र को ममता के मणि माणिक्य दे जाता है ।
पिता की ममता ___मां की ममता दुनिया की सबसे बड़ी अनुभूति है । सच भी है कि मां के समान कोई भी नहीं होता । मानसिक संवेदनाएं मां से अधिक अन्य किसी को स्वीकार नहीं करतीं । यहां तक ठीक है , लेकिन मां के वात्सल्य का सबसे बड़ा पूरक तो पिता है । वह अपनी ममता को हृदय में दबाए सबकुछ न्योछावर करने के लिए पूरा जीवन लगा देता है ।
पिता अपनी संतान के लिए भी हर क्षण मरता है । यह विडंबना ही कही जाएगी कि मां की ममता में ही सब खो जाते हैं , पिता की ममता को स्पर्श करने का समय ही नहीं बचता । पिता के कठोर व्यवहार में ममता का सागर नहीं खोज पाते । यह कितना बड़ा अन्याय है , पिता के प्रति । मां के पास तो सभी जाते हैं , लेकिन पिता के पास मन की गहराइयों तक कोई जाना नहीं चाहता ।
पिता की ममता गहराइयों तक अंदर ही अंदर हर दिन नवीन आकार ग्रहण करती है । मां तो हर रोज ममता में जीती है , जबकि पिता हर रोज इसमें जीता ही नहीं , बल्कि मरता भी है ।
मां की कहानी सुखांत है , पिता की कहानी में दुखांत है ।
मां के प्रेम प्रवाह में पिता को सदैव भुलाया जाता रहा है । जीवन के निर्माण में पिता का योगदान निमित्त है , लेकिन मां को ही संसार देख पाता है । एक योगी की तपस्या की तरह पिता अपने जातक पर धैर्यपूर्वक पल - पल लुटाता चला जाता है , जीवन के अंतिम छोर तक । वह न कुछ चाहता है , न कुछ मांगता है । फिर भी पिता जीवनपर्यंत पुत्र पर स्नेह की वर्षा करता नहीं अघाता । मानो वह पुत्र के हित कल्याणा के लिए जीवन के पलों की आहुति दे रहा हो ।
पिता अपनी चिंता न करके अपनी संतान की भलाई का सब जतन करता फिरता है । उनकी भौतिक और अधिभौतिक सद्गतियों के लिए पिता प्राणपण से यथेष्ठ उपाय करता है । जीने की कला से लेकर जीवन के विज्ञान तक सभी पाठ सिखाता हआ वह पिता अंत समय में भी पत्र को ममता के मणि माणिक्य दे जाता है ।
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