devshyani ekashi 2025 देवशयनी एकादशी 2025: महत्व, व्रत कथा, पूजा विधि एवं लाभ



देवशयनी एकादशी 2025: महत्व, व्रत कथा, पूजा विधि एवं लाभ

भूमिका

हिंदू धर्म में एकादशी का अत्यंत विशेष महत्व होता है। हर माह में दो एकादशी तिथि आती हैं, जिनमें से आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इसे हरिशयनी एकादशी, पद्मा एकादशी या आषाढ़ी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के शयन पर जाने का प्रतीक होता है और इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत मानी जाती है।

आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं कि देवशयनी एकादशी क्या है, इसका धार्मिक महत्व, व्रत कथा, पूजन विधि और इस दिन व्रत करने से मिलने वाले लाभ।

devshyani ekadashi 2025


देवशयनी एकादशी क्या है? (What is Devshayani Ekadashi?)

देवशयनी एकादशी आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को आती है। इस दिन से भगवान विष्णु पाताल लोक में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार माह तक वहीं विश्राम करते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहते हैं। इसी दौरान विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, मुंडन आदि मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।

इस तिथि को भगवान विष्णु का पूजन करना, व्रत रखना और भगवान विष्णु के नाम का जाप करना विशेष पुण्यदायी होता है।


देवशयनी एकादशी 2025 में कब है? (Devshayani Ekadashi 2025 Date)

2025 में देवशयनी एकादशी 6 जुलाई, रविवार के दिन मनाई जाएगी।

इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लिया जाता है और दिनभर उपवास रखा जाता है। रात्रि को भगवान विष्णु का जागरण एवं भजन-कीर्तन किया जाता है।


देवशयनी एकादशी का महत्व (Significance of Devshayani Ekadashi)

1. भगवान विष्णु का शयन

मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर योगनिद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं, उस दिन जागते हैं। इस अवधि में धरती पर धार्मिक तप, पूजा-पाठ एवं व्रत का अत्यधिक महत्व है।

2. चातुर्मास की शुरुआत

देवशयनी एकादशी से चातुर्मास आरंभ होता है। यह चार महीनों की अवधि देवताओं के विश्राम की मानी जाती है। इस दौरान साधु-संत स्थिर रहते हैं, विवाह आदि मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं और लोग संयमित जीवन जीने का संकल्प लेते हैं।

3. पितृ दोष शांति

मान्यता है कि इस एकादशी के दिन व्रत, दान-पुण्य करने से पितृ दोष शांति मिलती है और पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति मिलती है।

4. मोक्ष प्राप्ति

देवशयनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत पुण्यकारी और जीवन में सुख-शांति प्रदान करने वाला माना गया है।


देवशयनी एकादशी व्रत कथा (Devshayani Ekadashi Vrat Katha)

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, सतयुग में मांधाता नामक एक प्रतापी राजा थे। उनके राज्य में सुख-शांति थी, परंतु एक समय वर्षा न होने के कारण अकाल पड़ गया। चारों ओर हाहाकार मच गया। राजा इस समस्या के समाधान के लिए महर्षि अंगिरा के आश्रम पहुंचे।

महर्षि अंगिरा ने राजा को आषाढ़ शुक्ल एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा ने विधिपूर्वक यह व्रत किया, जिससे उनके राज्य में पुनः वर्षा हुई और प्रजा में खुशहाली लौट आई। तभी से यह व्रत लोक कल्याणकारी माना जाता है।


देवशयनी एकादशी पूजा विधि (Devshayani Ekadashi Puja Vidhi)

1. व्रत संकल्प

  • प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।

  • शुद्ध वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु का स्मरण करें।

  • व्रत का संकल्प लें – “मैं भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति हेतु देवशयनी एकादशी व्रत रखता/रखती हूं।”

2. पूजन विधि

  • भगवान विष्णु की स्वर्ण या पीतल की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें।

  • पंचामृत से भगवान विष्णु का अभिषेक करें।

  • पीले फूल, तुलसीदल, फल, नारियल आदि चढ़ाएं।

  • विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।

  • व्रत कथा सुनें या पढ़ें।

  • दीप प्रज्वलित कर आरती करें।

3. व्रत नियम

  • एकादशी के दिन अन्न का त्याग करें।

  • फलाहार करें या निर्जला व्रत रखें।

  • द्वादशी तिथि पर व्रत का पारण करें, अर्थात् व्रत खोलें।

  • गरीबों, ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।


देवशयनी एकादशी के व्रत के लाभ (Benefits of Devshayani Ekadashi Vrat)

  • पापों से मुक्ति मिलती है।

  • मन, मस्तिष्क एवं जीवन में शांति आती है।

  • घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

  • स्वास्थ्य लाभ होता है।

  • परिवार में कलह समाप्त होती है।

  • मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है।


चातुर्मास में क्या करें और क्या न करें? (Do's & Don'ts in Chaturmas)

क्या करें:

✔ व्रत-उपवास करें
✔ भगवान विष्णु का जाप करें
✔ धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें
✔ सत्संग एवं भजन-कीर्तन करें
✔ संयमित एवं सात्विक भोजन करें

क्या न करें:

✘ विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य न करें
✘ अधिक बाहर यात्रा न करें
✘ नशा, मांसाहार एवं अनैतिक कार्यों से दूर रहें
✘ आलस्य एवं क्रोध से बचें


देवशयनी एकादशी से जुड़े अन्य नाम (Other Names of Devshayani Ekadashi)

  • हरिशयनी एकादशी

  • पद्मा एकादशी

  • आषाढ़ी एकादशी

  • विष्णु शयन एकादशी

  • योगनिद्रा एकादशी


देवशयनी एकादशी से जुड़े रोचक तथ्य (Interesting Facts about Devshayani Ekadashi)

  • महाराष्ट्र में इस दिन पंढरपुर में भगवान विट्ठल (विष्णु) की विशाल यात्रा होती है। इसे ‘वारी’ कहा जाता है।

  • इस दिन चार महीने तक मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है।

  • किसान इसे वर्षा का संकेत मानते हैं।

  • इसे विवाह-योग के लिए प्रतिबंधित काल माना जाता है।


देवशयनी एकादशी का आध्यात्मिक महत्व (Spiritual Importance)

यह दिन सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर आत्मचिंतन और भगवान के ध्यान में लीन होने का है। भगवान विष्णु के शयन जाने का तात्पर्य है – हमें भी इस चार माह में अपने जीवन में संयम, तपस्या, सेवा और ध्यान का पालन करना चाहिए।


निष्कर्ष (Conclusion)

देवशयनी एकादशी का व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि आध्यात्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है। यह व्रत मन को संयमित करता है, पापों से मुक्ति दिलाता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यदि आप सुख-शांति, समृद्धि एवं मोक्ष की कामना करते हैं तो इस एकादशी पर व्रत एवं पूजन अवश्य करें।


आपको यह लेख कैसा लगा? कृपया बताएं और इसे अपने मित्रों एवं परिवार के साथ अवश्य साझा करें।


Comments

Popular posts from this blog

"Sorry कैसे बोलें कि सामने वाला हो जाए प्रभावित"

हम अपने शरीर को कैसे स्वस्थ रख सकते हैं

Daya bhav kya he दया भाव का महत्व