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Showing posts from May, 2020

Khushi kese prapt kare खुशी कैसे प्राप्त करे

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            How to get Happiness खुशी  ----प्रत्येक व्यक्ति खुश रहने की कामना करता है , लेकिन रहता नहीं । इसका प्रमुख कारण यह है कि व्यक्ति अपने मन में बेवजह के अवसादों से चिंताग्रस्त रहता है । वह उन काल्पनिक चिंताओं की छवि को हृदय में आकार देकर रखता है जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं है । इसी तरह कई बार व्यक्ति पुरानी पीड़ाओं के घाव को पीड़ामुक्त होने के बाद भी स्मरण करता रहता है ।  हमारे हृदय में अवचेतन मन 24 घंटे उपस्थित रहता है । यह अवचेतन मन व्यक्ति के अंतर्मन में रहता है । जो व्यक्ति काल्पनिक परेशानियों को दिन रात सोचते रहते हैं , अवचेतन मन में उन काल्पनिक परेशानियों का बोझ ' बढ़ता रहता है । व्यक्ति के चेहरे पर उन काल्पनिक परेशानियों के बोझ बीमारी , चिंता , क्रोध , ईर्ष्या के रूप में उजागर होते रहते हैं ।  खुशी दरसअल मनं की एक अवस्था है । इसे मन के अंदर ही प्राप्त किया जा सकता है । भौतिक वस्तुएं जैसे नौकरी , विवाह , अच्छा भोजन , घर , गाड़ी आदि क्षणिक आनंद प्रदान करती हैं , लेकिन खुशी नहीं । खुशी तो वह अवस्था है जिसे प्रकृति ने निः...

Prathvi ke devta पृथ्वी के देवता

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                     The God of  the Earth प्रत्यक्ष देवता ---हमारी परंपरा में देवता उसे कहा गया है जो जीवमात्र को निरंतर देता ही रहता है और बदले में कभी कुछ चाहता नहीं है । इसीलिए हमारे वेद पृथ्वी , अग्नि , जल , पर्वत , वायु और वृक्षों की प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि ये सभी देवता यथा रूप में मनुष्य के लिए सदा उपलब्ध रहें , क्योंकि बिना इनके मनुष्य जीवन की ही नहीं ,  सृष्टि में आए हुए किसी भी जीव के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है ।  पृथ्वी की स्तुति में वेद कहते हैं कि यह हमारी माता है और हम सभी इसके पुत्र हैं । यह हमें रहने का आधार देती है । इसकी कोख से ही हम अन्न , जल तथा वस्त्रादि सभी पदार्थ प्राप्त करते हैं । इसके विस्तार का ही यह प्रताप है कि हम सभी जीव स्वेच्छा और स्वच्छंदता से इसमें विचरण करते रहते हैं ।  अग्नि दो प्रकार की होती है । एक प्रत्यक्ष अग्नि और दूसरी अप्रत्यक्ष अग्नि । प्रत्यक्ष अग्नि सभी को प्रकाश देती है तथा अपनी ऊष्मा से शीतादि ऋतुओं में भी जीव मात्र की रक्षा करके सबका जीवन स...

Isthir mane ki mahima स्थिर मन की महिमा

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                    Stable mind स्थिर मन  ---मन का बल परमात्मा की कृपा से प्राप्त होता है । यह समय है मन की शक्ति को पहचानने का । मन जब चंचल होता है सांसारिक चमक - दमक की ओर दौड़ता है । जब यह स्थिर हो जाता है तो अंतर्दष्टि का धुंधलका छंटने लगता है ।  जीवन का सच दिखने लगता है । वास्तविक आकर्षण तो ईश्वर की रची सृष्टि में है । आज जब बाहर के मनुष्य रचित रंगों , रसों को भोगने के अवसर संकुचित और सीमित हो गए हैं , तब ईश्वर और सृष्टि से निकटता का सुयोग बना है ।  अब बंद घर की खिड़की खोलकर मन की आंखों से वह सौंदर्य देखने का समय है जो सामान्य जीवन में निकट होते हुए भी उपेक्षित रहा ।  स्थिर मन से देखें तो अब नित्य प्रातः उगने वाला सूर्य अधिक आकर्षक लगने लगेगा । स्थिर मन के आनंद की अनुभूति अद्भुत होती है जिससे हम संसार की भागदौड़ में वंचित रहते हैं ।  इसी कारण जीवन सदा दुविधाओं में झूलता रहता है । अज्ञानतावश हम इसे ही जीवन का ढंग मान लेते हैं । हम यह नहीं समझते कि परमात्मा ने हमें जो मानव जीवन दिया वह पुण्य कर्मों...

Pita ki mamta kya hoti hai पिता की ममता क्या होती है।

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                      पिता की ममता पिता की ममता  ___मां की ममता दुनिया की सबसे बड़ी अनुभूति है । सच भी है कि मां के समान कोई भी नहीं होता । मानसिक संवेदनाएं मां से अधिक अन्य किसी को स्वीकार नहीं करतीं । यहां तक ठीक है , लेकिन मां के वात्सल्य का सबसे बड़ा पूरक तो पिता है । वह अपनी ममता को हृदय में दबाए सबकुछ न्योछावर करने के लिए पूरा जीवन लगा देता है ।  पिता अपनी संतान के लिए भी हर क्षण मरता है । यह विडंबना ही कही जाएगी कि मां की ममता में ही सब खो जाते हैं , पिता की ममता को स्पर्श करने का समय ही नहीं बचता । पिता के कठोर व्यवहार में ममता का सागर नहीं खोज पाते । यह कितना बड़ा अन्याय है , पिता के प्रति । मां के पास तो सभी जाते हैं , लेकिन पिता के पास मन की गहराइयों तक कोई जाना नहीं चाहता ।  पिता की ममता गहराइयों तक अंदर ही अंदर हर दिन नवीन आकार ग्रहण करती है । मां तो हर रोज ममता में जीती है , जबकि पिता हर रोज इसमें जीता ही नहीं , बल्कि मरता भी है ।  मां की कहानी सुखांत है , पिता की कहानी में दुखांत है । ...